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Monday, July 1, 2024

रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई

 रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई

तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई

डरता हूँ कहीं खुश्क न हो जाये समंदर

राख अपनी कभी आप बहाता नहीं कोई

इक बार तो खुद मौत भी घबरा गयी होगी

यूँ मौत को सीने से लगाता नहीं कोई

माना कि उजालों ने तुम्हे दाग दिए थे

पै रात ढले शमा बुझाता नहीं कोई

साकी से गिला था तुम्हे मैखाने से शिकवा

अब ज़हर से भी प्यास बुझाता नहीं कोई

हर सुबह हिला देता था ज़ंजीर ज़माना

क्योँ आज दीवाने को जगाता नहीं कोई

अरथी तो उठा लेते हैं सब अश्क बहा के

नाज़-ए-दिल-ए-बेताब उठाता नहीं कोई

------ कैफ़ी आज़मी

Sunday, August 8, 2021

नीरज चौपरा

 

कब तक बोझ संभाला जाए,
द्वंद्व कहां तक पाला जाए
दूध छीन बच्चों के मुख से
क्यों नागों को पाला जाए

दोनों ओर लिखा हो भारत
सिक्का वही उछाला जाए

तू भी है राणा का वंशज
फेंक जहां तक भाला जाए

इस बिगड़ैल पड़ोसी को तो
फिर शीशे में ढाला जाए

तेरे मेरे दिल पर ताला
राम करें ये ताला जाए

'वाहिद' के घर दीप जले तो
मंदिर तलक उजाला जाए

--------------- वाहिद अली ‘वाहिद’

Wednesday, June 30, 2021

अजीब हुस्न है

अजीब हुस्न है उन सुर्ख़ सुर्ख़ गालों में

मय-ए-दो-अतिशा भर दी है दो पियालों में..

सुनें जो आप तो सोना हराम हो जाए

तमाम रात गुज़रती हैं जिन ख़यालों में..

उम्मीद-ओ-यास ने झगडे में डाल रक्खा है

न जीनेवालों में हम हैं न मरनेवालों में..

यहाँ ख़िज़ाँ का खटका न ख़ौफ़ गुलचीं का

बहार गुल में रहे या तुम्हारे गालों में..

नहीं है लुत्फ़ कि ख़ल्वत में ग़ैर शामिल हो

उठा दो शम्अ को, ये भी हैं जलनेवालों में..!!

----------------"जलील मानिकपुरी"

Wednesday, October 17, 2018

इस से पहले कि बेवफ़ा हो जाएँ

इस से पहले कि बेवफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ए दोस्त हम जुदा हो जाएँ

तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ

हम भी मजबूरियों का उज़्र करें
फिर कहीं और मुब्तिला हो जाएँ

अब के गर तू मिले तो हम तुझसे
ऐसे लिपटें तेरी क़बा हो जाएँ

बंदगी हमने छोड़ दी फ़राज़
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ
--------अहमद फ़राज़

Friday, March 6, 2015

बात छोटी-सी


बात छोटी-सी है पर हम आज तक समझे नहीं 
दिल के कहने पर कभी भी फ़ैसले करते नहीं
सुर्ख़ रुख़सारों पे हमने जब लगाया था गुलाल
दौड़कर छत पे चले जाना तेरा भूले नहीं
हार कुंडल , लाल बिंदिया , लाल जोड़े में थे वो
मेरे चेहरे की सफ़ेदी वो मगर समझे नहीं
हमने क्या-क्या ख़्वाब देखे थे इसी दिन के लिए
आज जब होली है तो वो घर से ही निकले नहीं
अब के है बारूद की बू चार-सू फैली हुई
खौफ़ है फैला हुआ आसार कुछ अच्छे नहीं.
उफ़ ! लड़कपन की वो रंगीनी न तुम पूछो `ख़याल'
तितलियों के रंग अब तक हाथ से छूटे नहीं

--------------------------------सतपाल 'ख़याल'

Wednesday, November 5, 2014

તારી તે લટને

તારી તે  લટને  લ્હેરવું  ગમે
ઘેલા કો  હૈયાને  ઘેરવું  ગમે
મંદ મંદ વાયુના  મનગમતા છંદમાં
વેણીનાં   ફૂલની   વ્હેતી  સુગંધમાં
ઠેર ઠેર વ્હાલને વિખેરવું ગમે
તારી તે  લટને  લ્હેરવું  ગમે
એનું તે ઘેન કોઈ  નેનમાં છવાય છે
તો ભોળું રે કોઈનું ભીતર ઘવાય છે
એ સૌ ઊલટભેર હેરવું ગમે
તારી તે  લટને  લ્હેરવું  ગમે
----------------------------------નિરંજન ભગત

Tuesday, October 29, 2013

साथ रोती थी मेरे


साथ रोती थी मेरे साथ हंसा करती थी
वो लड़की जो मेरे दिल में बसा करती थी

मेरी चाहत की तलबगार थी इस दर्जे की
वो मुसल्ले पे नमाज़ों में दुआ करती थी

एक लम्हे का बिछड़ना भी गिरां था उसको
रोते हुए मुझको ख़ुद से जुदा करती थी

मेरे दिल में रहा करती थी धड़कन बनकर
और साये की तरह साथ रहा करती थी

रोग दिल को लगा बैठी अंजाने में
मेरी आगोश में मरने की दुआ करती थी

बात क़िस्मत की है ‘फ़राज़’ जुदा हो गए हम
वरना वो तो मुझे तक़दीर कहा करती थी

---------------------अहमद फ़राज़