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Monday, July 1, 2024

रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई

 रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई

तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई

डरता हूँ कहीं खुश्क न हो जाये समंदर

राख अपनी कभी आप बहाता नहीं कोई

इक बार तो खुद मौत भी घबरा गयी होगी

यूँ मौत को सीने से लगाता नहीं कोई

माना कि उजालों ने तुम्हे दाग दिए थे

पै रात ढले शमा बुझाता नहीं कोई

साकी से गिला था तुम्हे मैखाने से शिकवा

अब ज़हर से भी प्यास बुझाता नहीं कोई

हर सुबह हिला देता था ज़ंजीर ज़माना

क्योँ आज दीवाने को जगाता नहीं कोई

अरथी तो उठा लेते हैं सब अश्क बहा के

नाज़-ए-दिल-ए-बेताब उठाता नहीं कोई

------ कैफ़ी आज़मी