अपनी रुसवाई तेरे नाम का चर्चा देखूँ ,
एक ज़रा शेर कहूँ और मैं क्या क्या देखूँ
नींद आ जाये तो क्या महफ़िलें बरपा देखूँ ,
आँख खुल जाये तो तन्हाई की सहर देखूँ
शाम भी हो गई धुंधला गई आँखें भी मेरी ,
भूलनेवाले मैं कब तक तेरा रस्ता देखूँ
सब ज़िदें उस की मैं पूरी करूँ हर बात सुनूँ ,
एक बच्चे की तरह से उसे हँसता देखूँ
मुझ पे छा जाये वो बरसात की ख़ुश्बू की तरह ,
अंग-अंग अपना उसी रुत में महकता देखूँ
तू मेरी तरह से यक्ता है मगर मेरे हबीब ,
जी में आता है कोई और भी तुझ सा देखूँ
मैं ने जिस लम्हे को पूजा है उसे बस एक बार ,
ख़्वाब बन कर तेरी आँखों में उतरता देखूँ
तू मेरा कुछ नहीं लगता है मगर जान-ए-हयात ,
जाने क्यों तेरे लिये दिल को धड़कता देखूँ
----------------परवीन शाकिर