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Thursday, June 11, 2009

अपनी रुसवाई तेरे नाम का चर्चा देखूँ

अपनी रुसवाई तेरे नाम का चर्चा देखूँ ,

एक ज़रा शेर कहूँ और मैं क्या क्या देखूँ


नींद आ जाये तो क्या महफ़िलें बरपा देखूँ ,

आँख खुल जाये तो तन्हाई की सहर देखूँ


शाम भी हो गई धुंधला गई आँखें भी मेरी ,

भूलनेवाले मैं कब तक तेरा रस्ता देखूँ


सब ज़िदें उस की मैं पूरी करूँ हर बात सुनूँ ,

एक बच्चे की तरह से उसे हँसता देखूँ


मुझ पे छा जाये वो बरसात की ख़ुश्बू की तरह ,

अंग-अंग अपना उसी रुत में महकता देखूँ


तू मेरी तरह से यक्ता है मगर मेरे हबीब ,

जी में आता है कोई और भी तुझ सा देखूँ


मैं ने जिस लम्हे को पूजा है उसे बस एक बार ,

ख़्वाब बन कर तेरी आँखों में उतरता देखूँ


तू मेरा कुछ नहीं लगता है मगर जान-ए-हयात ,

जाने क्यों तेरे लिये दिल को धड़कता देखूँ

----------------परवीन शाकिर