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Sunday, June 20, 2010

इतनी हसीन इतनी जवाँ रात, क्या करें

इतनी हसीन इतनी जवाँ रात, क्या करें
जागे हैं कुछ अजीब से जज़्बात, क्या करें ?

पेड़ों के बाजुओं में महकती है चांदनी
बेचैन हो रहे हैं ख़्यालात, क्या करें ?

साँसों में घुल रही है किसी साँस की महक
दामन को छू रहा है कोई हाथ, क्या करें ?

शायद तुम्हारे आने से यह भेद खुल सके
हैराँ हैं कि आज नई बात क्या करें ?


-----------------------साहिर लुधियानवी