रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।
फ़ासला था कुछ हमारे बिस्तरों में
और चारों ओर दुनिया सो रही थी,
तारिकाएँ ही गगन की जानती हैं
जो दशा दिल की तुम्हारे हो रही थी,
मैं तुम्हारे पास होकर दूर तुमसे
अधजगा-सा और अधसोया हुआ सा,
रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।
एक बिजली छू गई, सहसा जगा मैं,
कृष्णपक्षी चाँद निकला था गगन में,
इस तरह करवट पड़ी थी तुम कि आँसू
बह रहे थे इस नयन से उस नयन में,
मैं लगा दूँ आग इस संसार में है
प्यार जिसमें इस तरह असमर्थ कातर,
जानती हो, उस समय क्या कर गुज़रने
के लिए था कर दिया तैयार तुमने!
रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।
प्रात ही की ओर को है रात चलती
औ’ उजाले में अंधेरा डूब जाता,
मंच ही पूरा बदलता कौन ऐसी,
खूबियों के साथ परदे को उठाता,
एक चेहरा-सा लगा तुमने लिया था,
और मैंने था उतारा एक चेहरा,
वो निशा का स्वप्न मेरा था कि अपने पर
ग़ज़ब का था किया अधिकार तुमने।
रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।
और उतने फ़ासले पर आज तक सौ
यत्न करके भी न आये फिर कभी हम,
फिर न आया वक्त वैसा, फिर न मौका
उस तरह का, फिर न लौटा चाँद निर्मम,
और अपनी वेदना मैं क्या बताऊँ,
क्या नहीं ये पंक्तियाँ खुद बोलती हैं
बुझ नहीं पाया अभी तक उस समय जो
रख दिया था हाथ पर अंगार तुमने।
रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।
-----------------हरिवंशराय बच्चन
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Sunday, February 26, 2012
वो कभी धूप कभी छाँव लगे
वो कभी धूप कभी छाँव लगे ।
मुझे क्या-क्या न मेरा गाँव लगे ।
किसी पीपल के तले जा बैठे
अब भी अपना जो कोई दाँव लगे ।
एक रोटी के त'अक्कुब में चला हूँ इतना
की मेरा पाँव किसी और ही का पाँव लगे ।
रोटि-रोज़ी की तलब जिसको कुचल देती है
उसकी ललकार भी एक सहमी हुई म्याँव लगे ।
जैसे देहात में लू लगती है चरवाहों को
बम्बई में यूँ ही तारों की हँसी छाँव लगे
------------------कैफ़ी आज़मी
मुझे क्या-क्या न मेरा गाँव लगे ।
किसी पीपल के तले जा बैठे
अब भी अपना जो कोई दाँव लगे ।
एक रोटी के त'अक्कुब में चला हूँ इतना
की मेरा पाँव किसी और ही का पाँव लगे ।
रोटि-रोज़ी की तलब जिसको कुचल देती है
उसकी ललकार भी एक सहमी हुई म्याँव लगे ।
जैसे देहात में लू लगती है चरवाहों को
बम्बई में यूँ ही तारों की हँसी छाँव लगे
------------------कैफ़ी आज़मी
Friday, February 24, 2012
सांझ की लाली
सांझ की लाली सुलग-सुलग कर बन गई काली धूल
आए न बालम बेदर्दी मैं चुनती रह गई फूल
रैन भई, बोझल अंखियन में चुभने लागे तारे
देस में मैं परदेसन हो गई जब से पिया सिधारे
पिछले पहर जब ओस पड़ी और ठन्डी पवन चली
हर करवट अंगारे बिछ गए सूनी सेज जली
दीप बुझे सन्नाटा टूटा बाजा भंवर का शंख
बैरन पवन उड़ा कर ले गई परवानों के पंख
--------------साहिर लुधियानवी
आए न बालम बेदर्दी मैं चुनती रह गई फूल
रैन भई, बोझल अंखियन में चुभने लागे तारे
देस में मैं परदेसन हो गई जब से पिया सिधारे
पिछले पहर जब ओस पड़ी और ठन्डी पवन चली
हर करवट अंगारे बिछ गए सूनी सेज जली
दीप बुझे सन्नाटा टूटा बाजा भंवर का शंख
बैरन पवन उड़ा कर ले गई परवानों के पंख
--------------साहिर लुधियानवी
Friday, February 17, 2012
हिज्र के मौसम
ऐसे हिज्र के मौसम अब कब आते हैं
तेरे अलावा याद हमें सब आते हैं
जज़्ब करे क्यों रेत हमारे अश्कों को
तेरा दामन तर करने अब आते हैं
अब वो सफ़र की ताब नहीं बाक़ी वरना
हम को बुलावे दश्त से जब-तब आते हैं
जागती आँखों से भी देखो दुनिया को
ख़्वाबों का क्या है वो हर शब आते हैं
काग़ज़ की कश्ती में दरिया पार किया
देखो हम को क्या-क्या करतब आते हैं
---------------शहरयार
तेरे अलावा याद हमें सब आते हैं
जज़्ब करे क्यों रेत हमारे अश्कों को
तेरा दामन तर करने अब आते हैं
अब वो सफ़र की ताब नहीं बाक़ी वरना
हम को बुलावे दश्त से जब-तब आते हैं
जागती आँखों से भी देखो दुनिया को
ख़्वाबों का क्या है वो हर शब आते हैं
काग़ज़ की कश्ती में दरिया पार किया
देखो हम को क्या-क्या करतब आते हैं
---------------शहरयार
Monday, February 13, 2012
रक्स में रात है बदन की तरह
रक्स में रात है बदन की तरह
बारिशों की हवा में बन की तरह
चाँद भी मेरी करवटों का गवाह
मेरे बिस्तर की हर शिकन की तरह
चाक है दामन ए क़बा ए बहार
मेरे ख़्वाबों के पैरहन की तरह
जिंदगी तुझसे दूर रह कर मैं
काट लूंगी जलावतन की तरह
मुझको तस्लीम मेरे चाँद कि मैं
तेरे हमराह हूँ गगन की तरह
बारहा तेरा इंतज़ार किया
अपने ख़्वाबों में इक दुल्हन की तरह
-----------परवीन शाकिर
बारिशों की हवा में बन की तरह
चाँद भी मेरी करवटों का गवाह
मेरे बिस्तर की हर शिकन की तरह
चाक है दामन ए क़बा ए बहार
मेरे ख़्वाबों के पैरहन की तरह
जिंदगी तुझसे दूर रह कर मैं
काट लूंगी जलावतन की तरह
मुझको तस्लीम मेरे चाँद कि मैं
तेरे हमराह हूँ गगन की तरह
बारहा तेरा इंतज़ार किया
अपने ख़्वाबों में इक दुल्हन की तरह
-----------परवीन शाकिर
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