Search the Collection

Thursday, September 27, 2012

जागती रात अकेली-सी लगे

जागती रात अकेली-सी लगे
ज़िंदगी एक पहेली-सी लगे

रुप का रंग-महल, ये दुनिया
एक दिन सूनी हवेली-सी लगे

हम-कलामी तेरी ख़ुश आए उसे
शायरी तेरी सहेली-सी लगे

मेरी इक उम्र की साथी ये ग़ज़ल
मुझ को हर रात नवेली-सी लगे

रातरानी सी वो महके ख़ामोशी
मुस्कुरादे तो चमेली-सी लगे

फ़न की महकी हुई मेंहदी से रची
ये बयाज़ उस की हथेली-सी लगे  

---------------------------अब्दुल अहद ‘साज़’