उजड़ी-उजड़ी हुई हर आस लगे
ज़िन्दगी राम का बनबास लगे
तू कि बहती हुई नदिया के समान
तुझको देखूँ तो मुझे प्यास लगे
फिर भी छूना उसे आसान नहीं
इतनी दूरी पे भी, जो पास लगे
वक़्त साया-सा कोई छोड़ गया
ये जो इक दर्द का एहसास लगे
एक इक लहर किसी युग की कथा
मुझको गंगा कोई इतिहास लगे
शे’र-ओ-नग़्मे से ये वहशत तेरी
खुद तेरी रूह का इफ़्लास लगे
---------------जाँ निसार अख़्तर