यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे
साथ चल मौज-ए-सबा हो जैसे
लोग यूँ देख कर हँस देते हैं
तू मुझे भूल गया हो जैसे
इश्क़ को शिर्क की हद तक न बड़ा
यूँ न मिल हमसे ख़ुदा हो जैसे
मौत भी आई तो इस नाज़ के साथ
मुझपे एहसान किया हो जैसे
ऐसे अंजान बने बैठे हो
तुम को कुछ भी न पता हो जैसे
हिचकियाँ रात को आती ही रहीं
तू ने फिर याद किया हो जैसे
ज़िन्दगी बीत रही है "दानिश"
एक बेजुर्म सज़ा हो जैसे
--------------------अहसान बिन 'दानिश'