उस बेवफ़ा का शहर है और हम हैं दोस्तों
अश्क-ए-रवाँ की नहर है और हम हैं दोस्तों
शाम-ए-आलम ढली तो चली दर्द की हवा,
रातों का पिछला पहर है और हम हैं दोस्तों
आँखों में उड़ रही है लुटी महफ़िलों की धूल,
इब्रत बर-ए-दहर है और हम हैं दोस्तों
ये अजनबी सी मंज़िलें और रफ़्तगा की याद,
तन्हाइयों का ज़हर है और हम हैं दोस्तों
------------------मुनीर नियाज़ी