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Monday, December 7, 2009

और तो कोई बस न चलेगा

और तो कोई बस न चलेगा हिज्र के दर्द के मारों का|
सुबह का होना दूभर कर दें रस्ता रोक सितारों का|

झूठे सिक्कों में भी उठा देते हैं अक्सर सच्चा माल,
शक्लें देख के सौदा करना काम है इन बंजारों का|

अपनी ज़ुबां से कुछ न कहेंगे चुप ही रहेंगे आशिक़ लोग,
तुम से तो इतना हो सकता है पूछो हाल बेचारों का|

एक ज़रा सी बात थी जिस का चर्चा पहुंचा गली गली,
हम गुमनामों ने फिर भी एहसान न माना यारों का|

दर्द का कहना चीख उठो दिल का तक़ाज़ा वज़'अ निभाओ,
सब कुछ सहना चुप चुप रहना काम है इजाज़त-दारों का|

--------------------------इब्ने इंशा