कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे
ईमान-ए-कुफ़्र और न दुनियाअ व दीं रहे
ऐ इश्क़ शादबाश कि तनहा हमीं रहे
या रब किसी के राज़-ए-मोहब्बत की ख़ैर हो
दस्त-ए-जुनूँ रहे न रहे आस्तीं रहे
जा और कोई ज़ब्त की दुनिया तलाश कर
ऐ इश्क़ हम तो अब तेरे क़ाबिल नहीं रहे
मुझ को नहीं क़ुबूल दो आलम की वुस'अतें
क़िस्मत में कू-ए-यार की दो ग़ज़ ज़मीं रहे
दर्द-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ के ये स ख़्त मरहले
हैरां हूँ मैं कि फिर भी तुम इतने हसीं रहे
इस इश्क़ की तलाफ़ी-ए-माफ़ात देखना
रोने की हसरतें हैं जब आँसू नहीं रहे
-------------------जिगर मुरादाबादी