नज़र नज़र से मिलाकर शराब पीते है,
हम उनको पास बिठाकर शराब पीते है.
इसीलिए तो अँधेरा है मैकदे में बहुत,
यहाँ घरों को जलाकर शराब पीते है.
हमें तुम्हारे सिवा कुछ नज़र नही आता,
तुम्हे नज़र में सजाकर शराब पीते है.
उन्हीं के हिस्से आती है प्यास ही अक्सर,
जो दूसरों को पिलाकर शराब पीते है.
-----------------------------तस्नीम फ़ारूक़ी