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Friday, April 17, 2009

वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ

वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ

वो शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहाँ

फ़ुर्सत-ए-कारोबार-ए-शौक़ किसे

ज़ौक़-ए-नज़ारा-ए-जमाल कहाँ

दिल तो दिल वो दिमाग़ भी न रहा

शोर-ए-सौदा-ए-ख़त-ओ-ख़ाल कहाँ

थी वो इक शख्स के तसव्वुर से

अब वो रानाई-ए-ख़याल कहाँ

ऐसा आसाँ नहीं लहू रोना

दिल में ताक़त जिगर में हाल कहाँ

हमसे छूटा क़िमारख़ाना-ए-इश्क़

वाँ जो जायेँ गिरह में माल कहाँ

फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ

मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ

मुज़महिल हो गये क़ुवा "ग़ालिब"

वो अनासिर में ऐतदाल कहाँ

------------------------ग़ालिब