सखि ऊ दिन अब कब अइहैं,
पिया संग खेलब होरी ।
बिसरत नाहिं सखी मन बसिया
केसर घोरि कमोरी ।
हेरि हिये मारी पिचकारी
मली कपोलन रोरी ।
पीत मुख अरुन भयो री -
पिया संग खेलब होरी ।
अलक लाल भइ पलक लाल भइ
तन-मन लाल भयो री ।
चुनरी सेज सबै अरु नारी
लाल ही लाल छयौ री ।
आन कोउ रंग न रह्यौ री -
पिया संग खेलब होरी ।
भ्रमित भई तब भरि अँकवरिया
धरि अँगुरिन की पोरी ।
पंकिल गुन-गुन गावन लागे
प्रेम सुधा-रस बोरी ।
अचल सुख उदय भयो री -
पिया संग खेलब होरी ।
----------------प्रेम नारायण ’पंकिल’