मिले किसी से नज़र तो समझो ग़ज़ल हुई
रहे अपनी ख़बर तो समझो ग़ज़ल हुई
मिला के नज़रों को वो हया से फिर,
झुका ले कोई नज़र तो समझो ग़ज़ल हुई
इधर मचल कर उन्हें पुकारे जुनूँ मेरा,
भड़क उठे दिल उधर तो समझो ग़ज़ल हुई
उदास बिस्तर की सिलवटे जब तुम्हें चुभें,
न सो सको रात भर तो समझो ग़ज़ल हुई
वो बदगुमाँ हो तो शेर सूझे न शायरी,
वो महरबाँ हो ज़फ़र तो समझो ग़ज़ल हुई
----------------------------- ज़फ़र गोरखपुरी
रहे अपनी ख़बर तो समझो ग़ज़ल हुई
मिला के नज़रों को वो हया से फिर,
झुका ले कोई नज़र तो समझो ग़ज़ल हुई
इधर मचल कर उन्हें पुकारे जुनूँ मेरा,
भड़क उठे दिल उधर तो समझो ग़ज़ल हुई
उदास बिस्तर की सिलवटे जब तुम्हें चुभें,
न सो सको रात भर तो समझो ग़ज़ल हुई
वो बदगुमाँ हो तो शेर सूझे न शायरी,
वो महरबाँ हो ज़फ़र तो समझो ग़ज़ल हुई
----------------------------- ज़फ़र गोरखपुरी