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Thursday, October 2, 2008

''सत्यमेव जयते''

सत्यमेव जयते नानृतम् सत्येन पन्था विततो देवयानः ।
येनाक्रमत् मनुष्यो ह्यात्मकामो यत्र तत् सत्यस्य परं निधानं ॥

जय सत्य का होता है, असत्य का नहीं । दैवी मार्ग सत्य से फैला हुआ है । जिस मार्ग पे जाने से मनुष्य आत्मकाम बनता है, वही सत्य का परम् धाम है ।

''सत्यमेव जयते''मुण्डक उपनिषद के तीसरे मुण्डक के पहले खण्ड के छठे मंत्र का एक भाग है।