Search the Collection

Friday, September 26, 2008

પરિપક્વતા

હવે હું જીવનમાં બરોબર ગોઠવાઈ ગયો છું.
ડેલ કાર્નેગીએ સાચે જ સોનાની કૂંચી આપી દીધી છે.
આપોઆપ બધે ખૂલતાં જાય છે દ્વાર.
હા, કોઈ માંદું પડે તો તરત જ પહોંચી જાઉં છું પાસે.
કોઈની વર્ષગાંઠ હોય ત્યારે ફૂલનો ગુચ્છો મોકલવનું ભૂલતો નથી.
અને સારેમાઠે પ્રસંગે તાર કરવાનું પણ ચૂકતો નથી.

ઓફિસમાં બધા હસતા ચહેરા નિર્દોષ જ હોય
એમ માનું એવો બાળક રહ્યો નથી હવે.
પ્રત્યેકની એક કિંમત હોય છે એ સત્ય
નસેનસમાં લોહીની જેમ વહી રહ્યું છે.

યાદ આવે છે:
પહેલી વાર સ્મશાને ગયો તે પછી
કેટલીય રાત જંપીને સૂઈ ન’તો શક્યો,
પણ હવે તો
મને નનામી બાંધતા પણ આવડી ગઈ છે.

--------વિપિન પરીખ

Wednesday, September 17, 2008

अशार मेरे यूँ तो

अशार मेरे यूँ तो ज़माने के लिये हैं
कुछ शेर फ़क़त उनको सुनाने के लिये हैं
अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिये हैं
आँखों में जो भर लोगे तो कांटों से चुभेंगे
ये ख़्वाब तो पलकों पे सजाने के लिये हैं
देखूँ तेरे हाथों को तो लगता है तेरे हाथ
मंदिर में फ़क़त दीप जलाने के लिये हैं
सोचो तो बड़ी चीज़ है तहज़ीब बदन की
वरना तो फकत आग बुझाने के लिये हैं
ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिये हैं

------जाँ निसार अख़्तर

कौन कहता है

कौन कहता है तुझे मैनें भुला रखा है
तेरी यादों को कलेजे से लगा रखा है
लब पे आहें भी नहीं आँख में आँसू भी नहीं
दिल ने हर राज़ मुहब्बत का छुपा रखा है
तूने जो दिल के अंधेरे में जलाया था कभी
वो दिया आज भी सीने में जला रखा है
देख जा आ के महकते हुये ज़ख़्मों की बहार
मैनें अब तक तेरे गुलशन को सजा रखा है

--------जाँ निसार अख़्तर

हिज्र की पहली शाम के साये

हिज्र की पहली शाम के साये दूर उफ़क़ तक छाये थे
हम जब उसके शहर से निकले सब रास्ते सँवलाये थे
जाने वो क्या सोच रहा था अपने दिल में सारी रात
प्यार की बातें करते करते उस के नैन भर आये थे
मेरे अन्दर चली थी आँधी ठीक उसी दिन पतझड़ की
जिस दिन अपने जूड़े में उसने कुछ फूल सजाये थे
उसने कितने प्यार से अपना कुफ़्र दिया नज़राने में
हम अपने ईमान का सौदा जिससे करने आये थे
कैसे जाती मेरे बदन से बीते लम्हों की ख़ुश्बू
ख़्वाबों की उस बस्ती में कुछ फूल मेरे हम-साये थे
कैसा प्यारा मंज़र था जब देख के अपने साथी को
पेड़ पे बैठी इक चिड़िया ने अपने पर फैलाये थे
रुख़्सत के दिन भीगी आँखों उसका वो कहना हाए "क़तील"
तुम को लौट ही जाना था तो इस नगरी क्यूँ आये थे

------------क़तील

अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझ को

अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको
मैं हूँ तेरा नसीब अपना बना ले मुझको
मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के मानी
ये तेरी सदादिली मार न डाले मुझको
मैं समंदर भी हूँ मोती भी हूँ ग़ोताज़न भी
कोई भी नाम मेरा लेके बुला ले मुझको
तूने देखा नहीं आईने से आगे कुछ भी
ख़ुदपरस्ती में कहीं तू ना गँवा ले मुझको
कल की बात और है मैं अब सा रहूँ या न रहूँ
जितना जी चाहे तेरा आज सता ले मुझको
ख़ुद को मैं बाँट न डालूँ कहीं दामन-दामन
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको
मैं जो काँटा हूँ तो चल मुझसे बचाकर दामन
मैं हूँ गर फूल तो जूड़े में सजा ले मुझको
मैं खुले दर के किसी घर का हूँ सामाँ प्यारे
तू दबे पाँव कभी आ के चुरा ले मुझको
तर्क-ए-उल्फ़त की क़सम भी कोई होती है क़सम
तू कभी याद तो कर भूलने वाले मुझको
बादा फिर बादा है मैं ज़हर भी पी जाऊँ "क़तील"
शर्त ये है कोई बाहों में सम्भाले मुझको

---------क़तील

अपने होंठों पर सजाना चाहता हूँ

अपने होठों पर सजाना चाहता हूँ
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ
कोई आँसू तेरे दामन पर गिराकर
बूँद को मोती बनाना चाहता हूँ
थक गया मैं करते-करते याद तुझको
अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ
छा रहा है सारी बस्ती में अँधेरा
रौशनी हो घर जलाना चाहता हूँ
आख़री हिचकी तेरे ज़ानों पे आये
मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ

--------क़तील

Sunday, September 7, 2008

ધાર કે વેચાય છે સામી દુકાને સ્વર્ગ,પણ,
કોણ ઓળંગે સડક એ ધારણાના નામ પર
--ચિનુ મોદી

સહવાસ ના પડદામાં અબોલો રહી જાઉ
ઘર માં જ વસુ તોય ભટકતો રહી જાઉ
જો પ્રેમ મળે છે તો પ્રતિબિંબ ની જેમ
પાણીમાં પડુ તોય સુક્કો રહી જાઉ.
--જવાહર બક્ષી

આગના ભડકા મહીથી એક તણખો આપશે
કાં પછી તૂટેલ કૌ એકાદ મણકો આપશે
વહાલની સીમા વટાવી જો કરો વિશ્વાસ તો
આયખૂ તૂટી પડે એવોજ સણકો આપશે.
--મૂકેશ જોષી

હશે બીજી કલા કે જે ફૂંકે છે પ્રણય માં પ્રાણ
શું ફક્ત બંસરીના સુર થી રીઝે છે રાધાઓ?

Saturday, September 6, 2008

आम्ही जातो आमुच्या गावा

देहाची तिजोरी, भक्तीचाच ठेवा
उघड दार देवा आता उघड दार देवा

पिते दूध डोळे मिटूनी, जात मांजराची
मनी चोरट्याच्या का रे भिती चांदण्यांची
सरावल्या हातांनाही कंप का सुटावा

उजेडात होते पुण्य, अंधारात पाप
ज्याचे त्याचे हाती आहे कर्तव्याचे माप
दुष्ट दुर्जनांची कैसी घडे लोक सेवा

स्वार्थ जणू भिंतीवरचा आरसा बिलोरी
आपुलीच प्रतिमा होते, आपुलीच वैरी
घडोघडी अपराधांचा तोल सावरावा


--------------जगदीश खेबुडकर