सखि ऊ दिन अब कब अइहैं,
पिया संग खेलब होरी ।
बिसरत नाहिं सखी मन बसिया
केसर घोरि कमोरी ।
हेरि हिये मारी पिचकारी
मली कपोलन रोरी ।
पीत मुख अरुन भयो री -
पिया संग खेलब होरी ।
अलक लाल भइ पलक लाल भइ
तन-मन लाल भयो री ।
चुनरी सेज सबै अरु नारी
लाल ही लाल छयौ री ।
आन कोउ रंग न रह्यौ री -
पिया संग खेलब होरी ।
भ्रमित भई तब भरि अँकवरिया
धरि अँगुरिन की पोरी ।
पंकिल गुन-गुन गावन लागे
प्रेम सुधा-रस बोरी ।
अचल सुख उदय भयो री -
पिया संग खेलब होरी ।
----------------प्रेम नारायण ’पंकिल’
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Saturday, February 27, 2010
इस होली पे
इस होली पे यदि तुम न आए
तो मैं तुमसे रूठ जाऊँगी
किया था जो सखियों से वादा
तुमको उनसे मिलवाऊँगी
कैसे वादा अपना निभा पाऊँगी
इस होली पे यदि तुम न आए
तो मैं तुमसे रूठ जाऊँगी
बना रही हूँ
जो अपने हाथों से
प्रेम रंग
फिर वो किसको लगाऊँगी
इस होली पे यदि तुम न आए
तो मैं तुमसे रूठ जाऊँगी
कैसे तुम्हारे बिना
पकवानों की मिठास चख पाऊँगी
इस होली पे यदि तुम न आए
तो मैं तुमसे रूठ जाऊँगी
मालूम है मुझे तुम
जेठ की छुट्टियों में आओगे
तुम ही बताओ
तब भला मैं कहाँ से
फूलों की बहार लाऊँगी
इस होली पे यदि तुम न आए
तो मैं तुमसे रूठ जाऊँगी
ना मैं तुम्हें
पीली सरसों का हाल बताऊँगी
न पाती भेज कर
गाँव की मिटटी सूँघाऊँगी
इस होली पे यदि तुम न आए
तो मैं तुमसे रूठ जाऊँगी
ना सोमवार को मन्दिर
तुम्हारे लिए जाऊँगी
न देख कर चाँद को मुस्कराऊँगी
इस होली पे यदि तुम न आए
तो मैं तुमसे रूठ जाऊँगी
बादल भइया से कह कर
सावन में तुमको तड़पाऊँगी
ना रिमझिम बरसातों में
मधुर गीत सुनाऊँगी
देख लेना इस होली पे
यदि तुम न आए
तो मैं तुमसे रूठ जाउंगी
------------------अंजु गर्ग
तो मैं तुमसे रूठ जाऊँगी
किया था जो सखियों से वादा
तुमको उनसे मिलवाऊँगी
कैसे वादा अपना निभा पाऊँगी
इस होली पे यदि तुम न आए
तो मैं तुमसे रूठ जाऊँगी
बना रही हूँ
जो अपने हाथों से
प्रेम रंग
फिर वो किसको लगाऊँगी
इस होली पे यदि तुम न आए
तो मैं तुमसे रूठ जाऊँगी
कैसे तुम्हारे बिना
पकवानों की मिठास चख पाऊँगी
इस होली पे यदि तुम न आए
तो मैं तुमसे रूठ जाऊँगी
मालूम है मुझे तुम
जेठ की छुट्टियों में आओगे
तुम ही बताओ
तब भला मैं कहाँ से
फूलों की बहार लाऊँगी
इस होली पे यदि तुम न आए
तो मैं तुमसे रूठ जाऊँगी
ना मैं तुम्हें
पीली सरसों का हाल बताऊँगी
न पाती भेज कर
गाँव की मिटटी सूँघाऊँगी
इस होली पे यदि तुम न आए
तो मैं तुमसे रूठ जाऊँगी
ना सोमवार को मन्दिर
तुम्हारे लिए जाऊँगी
न देख कर चाँद को मुस्कराऊँगी
इस होली पे यदि तुम न आए
तो मैं तुमसे रूठ जाऊँगी
बादल भइया से कह कर
सावन में तुमको तड़पाऊँगी
ना रिमझिम बरसातों में
मधुर गीत सुनाऊँगी
देख लेना इस होली पे
यदि तुम न आए
तो मैं तुमसे रूठ जाउंगी
------------------अंजु गर्ग
होली की व्यथा
होली की हुल्लड़बाजी है, पड़ोस का लड़का पाजी है
मन बहार जाने को व्याकुल है, पर दरवाजे पर अब्बा मांजी हैं
चारो तरफ उमंग है, होली का हुडदंग है
कहीं गुलाल कहीं रंग है, कहीं गुझिया कहीं भंग है
लड़का लड़की के संग है, लड़की के वस्त्र तंग हैं
वो देखो उसने उसको रंग लगाया
लड़की को ज़रा गुस्सा नहीं आया
वो लड़कियां कैसे चहचहा रही हैं
आज लड़कों के साथ नहा रही हैं
पर मुझे कहाँ आज़ादी है
दरवाजे पर अब्बा मांजी हैं
काश मैं भी वहां होती
पडोसी की पिचकारी से खुद को भिगोती
वो हाथ मेरा पकड़ता, गालों पे रंग रगड़ता
कहती क्या गज़ब ढाते हो, होली का फायदा उठाते हो
देखो अपनी हद में रहो, जो चाहते हो मुंह से कहो
पर वो कहाँ मानता, मेरे दिल की बात जानता
मुझे सीने से लगाता, और स्पर्श सुख मिल जाता
पर किस्मत में कहाँ ये बाज़ी है
दरवाजे पर अब्बा मांजी हैं
काश वो छत पे आ जाये, सितम आज वो ढा जाये
करें तमाशा हंसी ठिठोली, मिल कर खेले जी भर होली
साल में मौका यही मिले है, पर हाय रे सूनी जाय रे होली
मुझ पर ये पहरेबाजी है
दरवाजे पर अब्बा मांजी हैं
-------------------------अनिल कुमार
मन बहार जाने को व्याकुल है, पर दरवाजे पर अब्बा मांजी हैं
चारो तरफ उमंग है, होली का हुडदंग है
कहीं गुलाल कहीं रंग है, कहीं गुझिया कहीं भंग है
लड़का लड़की के संग है, लड़की के वस्त्र तंग हैं
वो देखो उसने उसको रंग लगाया
लड़की को ज़रा गुस्सा नहीं आया
वो लड़कियां कैसे चहचहा रही हैं
आज लड़कों के साथ नहा रही हैं
पर मुझे कहाँ आज़ादी है
दरवाजे पर अब्बा मांजी हैं
काश मैं भी वहां होती
पडोसी की पिचकारी से खुद को भिगोती
वो हाथ मेरा पकड़ता, गालों पे रंग रगड़ता
कहती क्या गज़ब ढाते हो, होली का फायदा उठाते हो
देखो अपनी हद में रहो, जो चाहते हो मुंह से कहो
पर वो कहाँ मानता, मेरे दिल की बात जानता
मुझे सीने से लगाता, और स्पर्श सुख मिल जाता
पर किस्मत में कहाँ ये बाज़ी है
दरवाजे पर अब्बा मांजी हैं
काश वो छत पे आ जाये, सितम आज वो ढा जाये
करें तमाशा हंसी ठिठोली, मिल कर खेले जी भर होली
साल में मौका यही मिले है, पर हाय रे सूनी जाय रे होली
मुझ पर ये पहरेबाजी है
दरवाजे पर अब्बा मांजी हैं
-------------------------अनिल कुमार
Wednesday, February 10, 2010
आ चांदनी भी मेरी तरह जाग रही है
आ चांदनी भी मेरी तरह जाग रही है
पलकों पे सितारों को लिये रात खड़ी है
ये बात कि सूरत के भले दिल के बुरे हों
अल्लाह करे झूठ हो बहुतों से सूनी है
वो माथे का मतला हो कि होंठों के दो मिसरे
बचपन की ग़ज़ल ही मेरी महबूब रही है
ग़ज़लों ने वहीं ज़ुल्फ़ों के फैला दिये साये
जिन राहों पे देखा है बहुत धूप कड़ी है
हम दिल्ली भी हो आये हैं लाहौर भी घूमे
ऐ यार मगर तेरी गली तेरी गली है
-------------------बशीर बद्र
पलकों पे सितारों को लिये रात खड़ी है
ये बात कि सूरत के भले दिल के बुरे हों
अल्लाह करे झूठ हो बहुतों से सूनी है
वो माथे का मतला हो कि होंठों के दो मिसरे
बचपन की ग़ज़ल ही मेरी महबूब रही है
ग़ज़लों ने वहीं ज़ुल्फ़ों के फैला दिये साये
जिन राहों पे देखा है बहुत धूप कड़ी है
हम दिल्ली भी हो आये हैं लाहौर भी घूमे
ऐ यार मगर तेरी गली तेरी गली है
-------------------बशीर बद्र
Monday, February 8, 2010
સજનવા
શબ્દને શોભે નહીં આ કાગઝી વસ્ત્રો સજનવા
આજથી પત્રોને બદલે લખજે નક્ષત્રો સજનવા
ખાલી હો તો પાછી તારી ઓઢણી લઈ લે સજનવા
ને હાથ સાથે હો તો કિંમત સો ગણી લઈ લે સજનવા
બે અમારા દૃ્ગ સજનવા, બે તમારા દૃગ સજનવા
વચ્ચેથી ગાયબ પછી બાકીનું આખુ જગ સજનવા
ક્યાં તો પીઝાનાં મિનારાને હવે પાડો સજનવા
નહીં તો મારી જેમ એને ઢળતા શિખવાડો સજનવા
સૂર્ય સામે એક આછું સ્મિત કર એવું સજનવા
થઈ પડે મુશ્કેલ એને ત્યાં ટકી રહેવુ સજનવા
આભને પળમાં બનાવી દે તું પારેવું સજનવા
થઈ જશે ભરપાઈ પૃથ્વીનું બધુ દેવું સજનવા
છે કશિશ કંઈ એવી આ કાયા કસુંબલમાં સજનવા
કે જાન સામેથી લુંટાવા ચાલી ચંબલમાં સજનવા
આજ કંઇ એવી કુશળતાથી રમો બાજી સજનવા
જીતનારા સંગ હારેલા યે હો રાજી સજનવા
ટેરવાં માગે છે તમને આટલું પૂછવા સજનવા
આંસુઓ સાથે અવાજો કઈ રીતે લૂછવા સજનવા
------------------ મુકુલ ચોક્સી
આજથી પત્રોને બદલે લખજે નક્ષત્રો સજનવા
ખાલી હો તો પાછી તારી ઓઢણી લઈ લે સજનવા
ને હાથ સાથે હો તો કિંમત સો ગણી લઈ લે સજનવા
બે અમારા દૃ્ગ સજનવા, બે તમારા દૃગ સજનવા
વચ્ચેથી ગાયબ પછી બાકીનું આખુ જગ સજનવા
ક્યાં તો પીઝાનાં મિનારાને હવે પાડો સજનવા
નહીં તો મારી જેમ એને ઢળતા શિખવાડો સજનવા
સૂર્ય સામે એક આછું સ્મિત કર એવું સજનવા
થઈ પડે મુશ્કેલ એને ત્યાં ટકી રહેવુ સજનવા
આભને પળમાં બનાવી દે તું પારેવું સજનવા
થઈ જશે ભરપાઈ પૃથ્વીનું બધુ દેવું સજનવા
છે કશિશ કંઈ એવી આ કાયા કસુંબલમાં સજનવા
કે જાન સામેથી લુંટાવા ચાલી ચંબલમાં સજનવા
આજ કંઇ એવી કુશળતાથી રમો બાજી સજનવા
જીતનારા સંગ હારેલા યે હો રાજી સજનવા
ટેરવાં માગે છે તમને આટલું પૂછવા સજનવા
આંસુઓ સાથે અવાજો કઈ રીતે લૂછવા સજનવા
------------------ મુકુલ ચોક્સી
सर से चादर बदन से क़बा ले गई
सर से चादर बदन से क़बा ले गई
ज़िन्दगी हम फ़क़ीरों से क्या ले गई
मेरी मुठ्ठी में सूखे हुये फूल हैं
ख़ुशबुओं को उड़ा कर हवा ले गई
मैं समुंदर के सीने में चट्टान था
रात एक मौज आई बहा ले गई
हम जो काग़ज़ थे अश्कों से भीगे हुये
क्यों चिराग़ों की लौ तक हवा ले गई
चाँद ने रात मुझको जगा कर कहा
एक लड़की तुम्हारा पता ले गई
मेरी शोहरत सियासत से महफ़ूस है
ये तवायफ़ भी इस्मत बचा ले गई
---------------बशीर बद्र
ज़िन्दगी हम फ़क़ीरों से क्या ले गई
मेरी मुठ्ठी में सूखे हुये फूल हैं
ख़ुशबुओं को उड़ा कर हवा ले गई
मैं समुंदर के सीने में चट्टान था
रात एक मौज आई बहा ले गई
हम जो काग़ज़ थे अश्कों से भीगे हुये
क्यों चिराग़ों की लौ तक हवा ले गई
चाँद ने रात मुझको जगा कर कहा
एक लड़की तुम्हारा पता ले गई
मेरी शोहरत सियासत से महफ़ूस है
ये तवायफ़ भी इस्मत बचा ले गई
---------------बशीर बद्र
परखना मत
परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता
बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहां दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता
हजारों शेर मेरे सो गये कागज की कब्रों में
अजब मां हूं कोई बच्चा मेरा ज़िन्दा नहीं रहता
तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नये अन्दाज वाला है
हमारे शहर में भी अब कोई हमसा नहीं रहता
मोहब्बत एक खुशबू है, हमेशा साथ रहती है
कोई इन्सान तन्हाई में भी कभी तन्हा नहीं रहता
कोई बादल हरे मौसम का फ़िर ऐलान करता है
ख़िज़ा के बाग में जब एक भी पत्ता नहीं रहता
--------------------बशीर बद्र
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता
बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहां दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता
हजारों शेर मेरे सो गये कागज की कब्रों में
अजब मां हूं कोई बच्चा मेरा ज़िन्दा नहीं रहता
तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नये अन्दाज वाला है
हमारे शहर में भी अब कोई हमसा नहीं रहता
मोहब्बत एक खुशबू है, हमेशा साथ रहती है
कोई इन्सान तन्हाई में भी कभी तन्हा नहीं रहता
कोई बादल हरे मौसम का फ़िर ऐलान करता है
ख़िज़ा के बाग में जब एक भी पत्ता नहीं रहता
--------------------बशीर बद्र
ख़ुदा हम को
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे
ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी भी ज़्यादा सफ़ाई न दे
हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई न दे
अभी तो बदन में लहू है बहुत
कलम छीन ले रोशनाई न दे
मुझे अपनी चादर से यूँ ढाँप लो
ज़मीं आसमाँ कुछ दिखाई न दे
ग़ुलामी को बरकत समझने लगें
असीरों को ऐसी रिहाई न दे
मुझे ऐसी जन्नत नहीं चाहिए
जहाँ से मदीना दिखाई न दे
मैं अश्कों से नाम-ए-मुहम्मद लिखूँ
क़लम छीन ले रोशनाई न दे
ख़ुदा ऐसे इरफ़ान का नाम है
रहे सामने और दिखाई न दे
-------------बशीर बद्र
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे
ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी भी ज़्यादा सफ़ाई न दे
हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई न दे
अभी तो बदन में लहू है बहुत
कलम छीन ले रोशनाई न दे
मुझे अपनी चादर से यूँ ढाँप लो
ज़मीं आसमाँ कुछ दिखाई न दे
ग़ुलामी को बरकत समझने लगें
असीरों को ऐसी रिहाई न दे
मुझे ऐसी जन्नत नहीं चाहिए
जहाँ से मदीना दिखाई न दे
मैं अश्कों से नाम-ए-मुहम्मद लिखूँ
क़लम छीन ले रोशनाई न दे
ख़ुदा ऐसे इरफ़ान का नाम है
रहे सामने और दिखाई न दे
-------------बशीर बद्र
कुछ तो मैं
कुछ तो मैं भी बहुत दिल का कमज़ोर हूँ
कुछ मुहब्बत भी है फ़ितरतन बदगुमाँ
तज़करा कोई हो ज़िक्र तेरा रहा
अव्वल-ए-आख़िरश दरमियाँ दरमियाँ
जाने किस देश से दिल में आ जाते हैं
चांदनी रात में दर्द के कारवाँ
-------------------बशीर बद्र
कुछ मुहब्बत भी है फ़ितरतन बदगुमाँ
तज़करा कोई हो ज़िक्र तेरा रहा
अव्वल-ए-आख़िरश दरमियाँ दरमियाँ
जाने किस देश से दिल में आ जाते हैं
चांदनी रात में दर्द के कारवाँ
-------------------बशीर बद्र
कहीं चांद राहों में
कहीं चांद राहों में खो गया कहीं चांदनी भी भटक गई
मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई
मेरी दास्ताँ का उरूज था तेरी नर्म पलकों की छाँव में
मेरे साथ था तुझे जागना तेरी आँख कैसे झपक गई
कभी हम मिले तो भी क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले
न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिझक गई
तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी क़ामयाब न हो सकीं
तेरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई
-------------------- बशीर बद्र
मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई
मेरी दास्ताँ का उरूज था तेरी नर्म पलकों की छाँव में
मेरे साथ था तुझे जागना तेरी आँख कैसे झपक गई
कभी हम मिले तो भी क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले
न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिझक गई
तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी क़ामयाब न हो सकीं
तेरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई
-------------------- बशीर बद्र
न जाने अश्क से आँखों में क्यों है आये हुए
न जाने अश्क से आँखों में क्यों है आये हुए
गुज़र गया ज़माना तुझे भुलाये हुए
जो मन्ज़िलें हैं तो बस रहरवान-ए-इश्क़ की हैं
वो साँस उखड़ी हुई पाँव डगमगाये हुए
न रहज़नों से रुके रास्ते मोहब्बत के
वो काफ़िले नज़र आये लुटे लुटाये हुए
अब इस के बाद मुझे कुछ ख़बर नहीं उन की
ग़म आशना हुए अपने हुए पराये हुए
ये इज़्तिराब सा क्या है कि मुद्दतें गुज़री
तुझे भुलाये हुए तेरी याद आये हुए
------------------फ़िराक़ गोरखपुरी
गुज़र गया ज़माना तुझे भुलाये हुए
जो मन्ज़िलें हैं तो बस रहरवान-ए-इश्क़ की हैं
वो साँस उखड़ी हुई पाँव डगमगाये हुए
न रहज़नों से रुके रास्ते मोहब्बत के
वो काफ़िले नज़र आये लुटे लुटाये हुए
अब इस के बाद मुझे कुछ ख़बर नहीं उन की
ग़म आशना हुए अपने हुए पराये हुए
ये इज़्तिराब सा क्या है कि मुद्दतें गुज़री
तुझे भुलाये हुए तेरी याद आये हुए
------------------फ़िराक़ गोरखपुरी
सर में सौदा भी नहीं
सर में सौदा भी नहीं, दिल में तमन्ना भी नहीं
लेकिन इस तर्क-ए-मोहब्बत का भरोसा भी नहीं
यूँ तो हंगामा उठाते नहीं दीवाना-ए-इश्क
मगर ऐ दोस्त, कुछ ऐसों का ठिकाना भी नहीं
मुद्दतें गुजरी, तेरी याद भी आई ना हमें
और हम भूल गये हों तुझे, ऐसा भी नहीं
ये भी सच है कि मोहब्बत में नहीं मैं मजबूर
ये भी सच है कि तेरा हुस्न कुछ ऐसा भी नहीं
दिल की गिनती ना यागानों में, ना बेगानों में
लेकिन इस ज़लवागाह-ए-नाज़ से उठता भी नहीं
बदगुमाँ हो के मिल ऐ दोस्त, जो मिलना है तुझे
ये झिझकते हुऐ मिलना कोई मिलना भी नहीं
शिकवा-ए-शौक करे क्या कोई उस शोख़ से जो
साफ़ कायल भी नहीं, साफ़ मुकरता भी नहीं
मेहरबानी को मोहब्बत नहीं कहते ऐ दोस्त
आह, मुझसे तो मेरी रंजिश-ए-बेजां भी नहीं
बात ये है कि सूकून-ए-दिल-ए-वहशी का मकाम
कुंज़-ए-ज़िन्दान भी नहीं, वुसत-ए-सहरा भी नहीं
मुँह से हम अपने बुरा तो नहीं कहते, कि "फ़िराक"
है तेरा दोस्त मगर आदमी अच्छा भी नहीं
-------------------फ़िराक़ गोरखपुरी
लेकिन इस तर्क-ए-मोहब्बत का भरोसा भी नहीं
यूँ तो हंगामा उठाते नहीं दीवाना-ए-इश्क
मगर ऐ दोस्त, कुछ ऐसों का ठिकाना भी नहीं
मुद्दतें गुजरी, तेरी याद भी आई ना हमें
और हम भूल गये हों तुझे, ऐसा भी नहीं
ये भी सच है कि मोहब्बत में नहीं मैं मजबूर
ये भी सच है कि तेरा हुस्न कुछ ऐसा भी नहीं
दिल की गिनती ना यागानों में, ना बेगानों में
लेकिन इस ज़लवागाह-ए-नाज़ से उठता भी नहीं
बदगुमाँ हो के मिल ऐ दोस्त, जो मिलना है तुझे
ये झिझकते हुऐ मिलना कोई मिलना भी नहीं
शिकवा-ए-शौक करे क्या कोई उस शोख़ से जो
साफ़ कायल भी नहीं, साफ़ मुकरता भी नहीं
मेहरबानी को मोहब्बत नहीं कहते ऐ दोस्त
आह, मुझसे तो मेरी रंजिश-ए-बेजां भी नहीं
बात ये है कि सूकून-ए-दिल-ए-वहशी का मकाम
कुंज़-ए-ज़िन्दान भी नहीं, वुसत-ए-सहरा भी नहीं
मुँह से हम अपने बुरा तो नहीं कहते, कि "फ़िराक"
है तेरा दोस्त मगर आदमी अच्छा भी नहीं
-------------------फ़िराक़ गोरखपुरी
Thursday, February 4, 2010
रुखों के चांद
रुखों के चांद, लबों के गुलाब मांगे है
बदन की प्यास, बदन की शराब मांगे है
मैं कितने लम्हे न जाने कहाँ गँवा आया
तेरी निगाह तो सारा हिसाब मांगे है
मैं किस से पूछने जाऊं कि आज हर कोई
मेरे सवाल का मुझसे जवाब मांगे है
दिल-ए-तबाह का यह हौसला भी क्या कम है
हर एक दर्द से जीने की ताब मांगे है
बजा कि वज़ा-ए-हया भी है एक चीज़ मगर
निशात-ए-दिल तुझे बे-हिजाब मांगे है
-----------------जाँ निसार अख़्तर
बदन की प्यास, बदन की शराब मांगे है
मैं कितने लम्हे न जाने कहाँ गँवा आया
तेरी निगाह तो सारा हिसाब मांगे है
मैं किस से पूछने जाऊं कि आज हर कोई
मेरे सवाल का मुझसे जवाब मांगे है
दिल-ए-तबाह का यह हौसला भी क्या कम है
हर एक दर्द से जीने की ताब मांगे है
बजा कि वज़ा-ए-हया भी है एक चीज़ मगर
निशात-ए-दिल तुझे बे-हिजाब मांगे है
-----------------जाँ निसार अख़्तर
यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दिया
यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दिया
रात भर तालि'-ए-बेदार ने सोने न दिया
एक शब बुलबुल-ए-बेताब के जागे न नसीब
पहलू-ए-गुल में कभी ख़ार ने सोने न दिया
रात भर कीं दिल-ए-बेताब ने बातें मुझ से
मुझ को इस इश्क़ के बीमार ने सोने न दिया
-----------------ख़्वाजा हैदर अली 'आतिश'
रात भर तालि'-ए-बेदार ने सोने न दिया
एक शब बुलबुल-ए-बेताब के जागे न नसीब
पहलू-ए-गुल में कभी ख़ार ने सोने न दिया
रात भर कीं दिल-ए-बेताब ने बातें मुझ से
मुझ को इस इश्क़ के बीमार ने सोने न दिया
-----------------ख़्वाजा हैदर अली 'आतिश'
बुझ गया दिल
बुझ गया दिल हयात बाक़ी है
छुप गया चाँद रात बाक़ी है
हाले-दिल उन से कह चुके सौ बार
अब भी कहने की बात बाक़ी है
रात बाक़ी थी जब वो बिछड़े थे
कट गई उम्र रात बाक़ी है
इश्क़ में हम निभा चुके सबसे 'ख़ुमार'
बस एक ज़ालिम हयात बाक़ी है
-------------ख़ुमार बाराबंकवी
छुप गया चाँद रात बाक़ी है
हाले-दिल उन से कह चुके सौ बार
अब भी कहने की बात बाक़ी है
रात बाक़ी थी जब वो बिछड़े थे
कट गई उम्र रात बाक़ी है
इश्क़ में हम निभा चुके सबसे 'ख़ुमार'
बस एक ज़ालिम हयात बाक़ी है
-------------ख़ुमार बाराबंकवी
जब भी चाहें
जब भी चाहें एक नई सूरत बना लेते हैं लोग
एक चेहरे पर कई चेहरे सजा लेते हैं लोग
मिल भी लेते हैं गले से अपने मतलब के लिए
आ पड़े मुश्किल तो नज़रें भी चुरा लेते हैं लोग
है बजा उनकी शिकायत लेकिन इसका क्या इलाज
बिजलियाँ खुद अपने गुलशन पर गिरा लेते हैं लोग
हो खुशी भी उनको हासिल ये ज़रूरी तो नहीं
गम छुपाने के लिए भी मुस्कुरा लेते हैं लोग
ये भी देखा है कि जब आ जाये गैरत का मुकाम
अपनी सूली अपने काँधे पर उठा लेते हैं लोग
----------------क़तील शिफ़ाई
एक चेहरे पर कई चेहरे सजा लेते हैं लोग
मिल भी लेते हैं गले से अपने मतलब के लिए
आ पड़े मुश्किल तो नज़रें भी चुरा लेते हैं लोग
है बजा उनकी शिकायत लेकिन इसका क्या इलाज
बिजलियाँ खुद अपने गुलशन पर गिरा लेते हैं लोग
हो खुशी भी उनको हासिल ये ज़रूरी तो नहीं
गम छुपाने के लिए भी मुस्कुरा लेते हैं लोग
ये भी देखा है कि जब आ जाये गैरत का मुकाम
अपनी सूली अपने काँधे पर उठा लेते हैं लोग
----------------क़तील शिफ़ाई
ज़िन्दगी में तो सभी प्यार किया करते हैं
ज़िन्दगी में तो सभी प्यार किया करते हैं
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा
तू मिला है तो ये एहसास हुआ है मुझको
ये मेरी उम्र मोहब्बत के लिये थोड़ी है
इक ज़रा सा ग़म-ए-दौराँ का भी हक़ है जिस पर
मैनें वो साँस भी तेरे लिये रख छोड़ी है
तुझपे हो जाऊँगा क़ुरबान तुझे चाहूँगा
अपने जज़्बात में नग़्मात रचाने के लिये
मैनें धड़कन की तरह दिल में बसाया है तुझे
मैं तसव्वुर भी जुदाई का भला कैसे करूँ
मैं ने क़िस्मत की लकीरों से चुराया है तुझे
प्यार का बन के निगेहबान तुझे चाहूँगा
तेरी हर चाप से जलते हैं ख़यालों में चिराग़
जब भी तू आये जगाता हुआ जादू आये
तुझको छू लूँ तो फिर ऐ जान-ए-तमन्ना मुझको
देर तक अपने बदन से तेरी ख़ुश्बू आये
तू बहारों का है उनवान तुझे चाहूँगा
----------------क़तील शिफ़ाई
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा
तू मिला है तो ये एहसास हुआ है मुझको
ये मेरी उम्र मोहब्बत के लिये थोड़ी है
इक ज़रा सा ग़म-ए-दौराँ का भी हक़ है जिस पर
मैनें वो साँस भी तेरे लिये रख छोड़ी है
तुझपे हो जाऊँगा क़ुरबान तुझे चाहूँगा
अपने जज़्बात में नग़्मात रचाने के लिये
मैनें धड़कन की तरह दिल में बसाया है तुझे
मैं तसव्वुर भी जुदाई का भला कैसे करूँ
मैं ने क़िस्मत की लकीरों से चुराया है तुझे
प्यार का बन के निगेहबान तुझे चाहूँगा
तेरी हर चाप से जलते हैं ख़यालों में चिराग़
जब भी तू आये जगाता हुआ जादू आये
तुझको छू लूँ तो फिर ऐ जान-ए-तमन्ना मुझको
देर तक अपने बदन से तेरी ख़ुश्बू आये
तू बहारों का है उनवान तुझे चाहूँगा
----------------क़तील शिफ़ाई
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