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Saturday, May 28, 2011

मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे

ताज तेरे लिए इक मज़हर-ए-उलफत ही सही
तुम को इस वादी-ए-रँगीं से अक़ीदत ही सही
मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे
बज़्म-ए-शाही में ग़रीबों का गुज़र क्या मानी
सब्त जिस राह पे हों सतवत-ए-शाही के निशाँ
उस पे उलफत भरी रूहों का सफर क्या मानी
मेरी महबूब पस-ए-पर्दा-ए-तशरीर-ए-वफ़ा
तूने सतवत के निशानों को तो देखा होता
मुर्दा शाहों के मक़ाबिर से बहलने वाली,
अपने तारीक़ मक़ानों को तो देखा होता
अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है
कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उनके
लेकिन उनके लिये तश्शीर का सामान नहीं
क्यूँकि वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस थे
ये इमारत-ओ-मक़ाबिर, ये फ़ासिले, ये हिसार
मुतल-क़ुलहुक्म शहँशाहों की अज़्मत के सुतून
दामन-ए-दहर पे उस रँग की गुलकारी है
जिसमें शामिल है तेरे और मेरे अजदाद का ख़ून
मेरी महबूब! उनहें भी तो मुहब्बत होगी
जिनकी सानाई ने बक़शी है इसे शक़्ल-ए-जमील
उनके प्यारों के मक़ाबिर रहे बेनाम-ओ-नमूद
आज तक उन पे जलाई न किसी ने क़ँदील
ये चमनज़ार ये जमुना का किनारा, ये महल
ये मुनक़्कश दर-ओ-दीवार, ये महराब ये ताक़
इक शहँशाह ने दौलत का सहारा ले कर
हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़
मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे

----------------- साहिर लुधियानवी

Saturday, May 21, 2011

हंगामा है क्यूँ बरपा

हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है

ना-तजुर्बाकारी से, वाइज़ की ये बातें हैं
इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है

उस मय से नहीं मतलब, दिल जिस से है बेगाना
मक़सूद है उस मय से, दिल ही में जो खिंचती है

वां दिल में कि दो सदमे,यां जी में कि सब सह लो
उन का भी अजब दिल है, मेरा भी अजब जी है

हर ज़र्रा चमकता है, अनवर-ए-इलाही से
हर साँस ये कहती है, कि हम हैं तो ख़ुदा भी है

सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत के करिश्मे हैं
बुत हम को कहें काफ़िर, अल्लाह की मर्ज़ी है

-------------------अकबर इलाहाबादी

Saturday, May 14, 2011

અટકચાળા ન કર

સ્થિર જળ સાથે અટકચાળા ન કર,
કાંકરા નાખીને કૂંડાળા ન કર.

લોક દિવાળી ભલે ને ઊજવે,
પેટ બાળીને તું અજવાળાં ન કર!

આજથી ગણ આવનારી કાલને,
પાછલાં વરસોના સરવાળા ન કર!

કયાંક પથ્થર ફેંકવાનું મન થશે,
ઈંટને તોડીને ઢેખાળા ન કર.

થઈ શકે તો રૂબરૂ આવીને મળ,
ઊંઘમાં આવીને ગોટાળા ન કર.

છે કવિતાઓ બધી મોઢે મને,
મારી મિલકતનાં તું રખવાળા ન કર.

----------------- ખલીલ ધનતેજવી

આપણને નહીં ફાવે

તમે મન મૂકી વરસો, ઝાપટું આપણને નહીં ફાવે,
અમે હેલીના માણસ, માવઠું આપણને નહીં ફાવે.

કહો તો માછલીની આંખમાં ડૂબકી દઈ આવું,
પરંતુ છીછરું ખાબોચિયું, આપણને નહીં ફાવે.

તું નહીં આવે તો એ ના આવવું પણ ફાવશે અમને,
ઘરે આવી, તારું પાછું જવું, આપણને નહીં ફાવે.

વફાદારીની આ ધગધગતી તાપણીઓ બુઝાવી દો,
સળગતું દિલ, દઝાતું કાળજું આપણને નહીં ફાવે.

તને ચાહું, ને તારા ચાહનારાઓને પણ ચાહું?
તું દિલ આપી દે પાછું, આ બધું આપણને નહીં ફાવે.

તમાચો ખાઈ લઉ ગાંધીગીરીના નામ પર હું પણ,
પણ આ પત્નીને બા સંબોધવું, આપણને નહીં ફાવે.

ખલિલ, અણગમતાને ગમતો કરી લેવું નથી ગમતું,
ભલે તમને બધાને ફાવતું, આપણને નહીં ફાવે.

------------ખલીલ ધનતેજવી

Sunday, May 1, 2011

मुझको मारा है हर इक दर्द-ओ-दवा से पहले

मुझको मारा है हर इक दर्द-ओ-दवा से पहले
दी सज़ा इश्क ने हर ज़ुर्म-ओ-खता से पहले

आतिश-ए-इश्क भडकती है हवा से पहले
होंठ जलते हैं मोहब्बत में दुआ से पहले

अब कमी क्या है तेरे बेसर-ओ-सामानों को
कुछ ना था तेरी कसम तर्क-ओ-फ़ना से पहले

इश्क-ए-बेबाक को दावे थे बहुत खलवत में
खो दिया सारा भरम, शर्म-ओ-हया से पहले

मौत के नाम से डरते थे हम ऐ शौक-ए-हयात
तूने तो मार ही डाला था, कज़ा से पहले

हम उन्हे पा कर फ़िराक, कुछ और भी खोये गये
ये तकल्लुफ़ तो ना थे अहद-ए-वफ़ा से पहले

--------------------फ़िराक़ गोरखपुरी