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Tuesday, December 15, 2009

आवारा हैं गलियों में मैं और मेरी तन्हाई

आवारा हैं गलियों में मैं और मेरी तन्हाई
जाएँ तो कहाँ जाएँ हर मोड़ पे रुस्वाई

ये फूल से चेहरे हैं हँसते हुए गुलदस्ते
कोई भी नहीं अपना बेगाने हैं सब रस्ते
राहें हैं तमाशाई राही भी तमाशाई
मैं और मेरी तन्हाई

अरमान सुलगते हैं सीने में चिता जैसे
क़ातिल नज़र आती है दुनिया की हवा जैसे
रोती है मेरे दिल पर बजती हुई शहनाई
मैं और मेरी तन्हाई

आकाश के माथे पर तारों का चराग़ां है
पहलू में मगर मेरे ज़ख्मों का गुलिस्तां है
आँखों से लहू टपका दामन में बहार आई
मैं और मेरी तन्हाई

हर रंग में ये दुनिया सौ रंग दिखाती है
रोकर कभी हँसती है हँस कर कभी गाती है
ये प्यार की बाहें हैं या मौत की अँगड़ाई
मैं और मेरी तन्हाई

------------------अली सरदार जाफ़री

Monday, December 7, 2009

હરિ તમારી કટ્ટી !

હરિ તમારી કટ્ટી !
કડવી કડવી જિંદગી આપી વાત કરો ગળચટ્ટી !

લોકલ ટ્રેનમાં ઊભા રહીને એક દિવસ તો આવો,
હું ય જોઉં છું, કેમ કરીને બંસી તમે બજાવો !
યાદ આવશે પળભરમાં તો ગયા જનમનાં ઘાવો,
કાશી હો કે કુરૂક્ષેત્રે હો, બધ્ધે પીડે અભાવો,
દરેક યુગને માપવાની આ જુદી જુદી ફૂટપટ્ટી,
હરિ તમારી કટ્ટી !

કદીક ધરતીકંપ કરાવો કદીક લાવો પૂર,
અજગર જેવો દુકાળ દઈને કેમ ભીંસો ભરપૂર ?
છાતીમાં છે ધબકારા પણ ધબકારામાં ઝૂર,
નીર ખૂટ્યા છે ધરતીના ને નભના ખૂટ્યા નૂર,
અડતાવેંત જ લોહી નીકળે એવી થઈ છે મટ્ટી,
હરિ તમારી કટ્ટી !

-------------------------હિતેન આનંદપરા

સાંભળ્યું ?

ઝુલ્ફમાં ભૂલી પડેલી આંગળી, તેં સાંભળ્યું ?
રાતભરનો થાક લઈ પાછી વળી, મેં સાંભળ્યું.

આંગળી ખંડેરનો હિસ્સો નથી, તેં સાંભળ્યું ?
છે હવે ગુલમહોરની કળી, મેં સાંભળ્યું.

ટેરવે ઘેઘુર સન્નાટો હતો, તેં સાંભળ્યું ?
દરબદર વાગે હવે ત્યાં વાંસળી, મેં સાંભળ્યું.

છે ઉઝરડા મખમલી આકાશમાં, તેં સાંભળ્યું ?
આ નખોનું નામ હિંસક વીજળી, મેં સાંભળ્યું.

સાવ બરછટ એ બધો વિસ્તાર છે, તેં સાંભળ્યું ?
એટલે જ ત્યાં સ્પર્શની લાશો ઢળી, મેં સાંભળ્યું.

આ અજાણ્યો દેશ માફક આવશે, તેં સાંભળ્યું ?
એક જાણીતી ગલી અહિંયા મળી, મેં સાંભળ્યું.

આપણું મળવું ગઝલ કહેવાય છે, તેં સાંભળ્યું ?
કાફિયા ઓઢી ફગાવી કામળી, મેં સાંભળ્યું.

----------------------------વિનોદ જોશી

एक पल में एक सदी का मज़ा

एक पल में एक सदी का मज़ा हमसे पूछिए
दो दिन की ज़िन्दगी का मज़ा हमसे पूछिए

भूले हैं रफ़्ता-रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
किश्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा हमसे पूछिए

आगाज़-ए-आशिकी का मज़ा आप जानिए
अंजाम-ए-आशिकी का मज़ा हमसे पूछिए

जलते दियों में जलते घरों जैसी लौ कहाँ
सरकार रोशनी का मज़ा हमसे पूछिए

वो जान ही गए कि हमें उनसे प्यार है
आँखों की मुख़बिरी का मज़ा हमसे पूछिए

हँसने का शौक़ हमको भी था आप की तरह
हँसिए मगर हँसी का मज़ा हमसे पूछिए

हम तौबा कर के मर गए कबले अजल "ख़ुमार"
तौहीन-ए-मयकशी का मज़ा हमसे पूछिये

----------------------ख़ुमार बाराबंकवी

तुम पूछो और मैं न बताऊँ

तुम पूछो और मैं न बताऊँ ऐसे तो हालात नहीं
एक ज़रा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं

किस को ख़बर थी साँवले बादल बिन बरसे उड़ जाते हैं
सावन आया लेकिन अपनी क़िस्मत में बरसात नहीं

माना जीवन में औरत एक बार मोहब्बत करती है
लेकिन मुझको ये तो बता दे क्या तू औरत ज़ात नहीं

ख़त्म हुआ मेरा अफ़साना अब ये आँसू पोंछ भी लो
जिस में कोई तारा चमके आज की रात वो रात नहीं

मेरे ग़मगीं होने पर अहबाब हैं यों हैरान "क़तील"
जैसे मैं पत्थर हूँ मेरे सीने में जज़्बात नहीं

-------------------------क़तील शिफ़ाई

गुज़रे दिनों की याद

गुज़रे दिनों की याद बरसती घटा लगे
गुज़रूँ जो उस गली से तो ठंडी हवा लगे

मेहमान बन के आये किसी रोज़ अगर वो शख़्स
उस रोज़ बिन सजाये मेरा घर सजा लगे

मैं इस लिये मनाता नहीं वस्ल की ख़ुशी
मेरे रक़ीब की न मुझे बददुआ लगे

वो क़हत दोस्ती का पड़ा है कि इन दिनों
जो मुस्कुरा के बात करे आश्ना लगे

तर्क-ए-वफ़ा के बाद ये उस की अदा "क़तील"
मुझको सताये कोई तो उस को बुरा लगे

----------------------क़तील शिफ़ाई

रात जुदाई की

अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की
तुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मेरी तन्हाई की

कौन सियाही घोल रहा था वक़्त के बहते दरिया में
मैंने आँख झुकी देखी है आज किसी हरजाई की

वस्ल की रात न जाने क्यूँ इसरार था उनको जाने पर
वक़्त से पहले डूब गए तारों ने बड़ी दानाई की

उड़ते-उड़ते आस का पंछी दूर उफ़क़ में डूब गया
रोते-रोते बैठ गई आवाज़ किसी सौदाई की

--------------------------क़तील शिफ़ाई

प्यार

अब्र-ए-बहार ने
फूल का चेहरा
अपने बनफ़्शी हाथ में लेकर
ऐसे चूमा
फूल के सारे दुख
ख़ुश्बू बन कर बह निकले हैं

----------परवीन शाकिर

रात के ख्वाब सुनाए

रात के ख्वाब सुनाए किस को रात के ख्वाब सुहाने थे|
धुंधले धुंधले चेहरे थे पर सब जाने पहचाने थे|

जिद्दी वहशी अल्हड़ चंचल मीठे लोग रसीले लोग,
होंठ उन के ग़ज़लों के मिसरे आंखों में अफ़साने थे|

ये लड़की तो इन गलियों में रोज़ ही घूमा करती थी,
इस से उन को मिलना था तो इस के लाख बहाने थे|

हम को सारी रात जगाया जलते बुझते तारों ने,
हम क्यूं उन के दर पे उतरे कितने और ठिकाने थे|

वहशत की उन्वान हमारी इन में से जो नार बनी,
देखेंगे तो लोग कहेंगे 'इन्शा' जी दीवाने थे|

-----------------------------इब्ने इंशा

और तो कोई बस न चलेगा

और तो कोई बस न चलेगा हिज्र के दर्द के मारों का|
सुबह का होना दूभर कर दें रस्ता रोक सितारों का|

झूठे सिक्कों में भी उठा देते हैं अक्सर सच्चा माल,
शक्लें देख के सौदा करना काम है इन बंजारों का|

अपनी ज़ुबां से कुछ न कहेंगे चुप ही रहेंगे आशिक़ लोग,
तुम से तो इतना हो सकता है पूछो हाल बेचारों का|

एक ज़रा सी बात थी जिस का चर्चा पहुंचा गली गली,
हम गुमनामों ने फिर भी एहसान न माना यारों का|

दर्द का कहना चीख उठो दिल का तक़ाज़ा वज़'अ निभाओ,
सब कुछ सहना चुप चुप रहना काम है इजाज़त-दारों का|

--------------------------इब्ने इंशा

जोग बिजोग की बातें झूठी

जोग बिजोग की बातें झूठी सब जी का बहलाना हो|
फिर भी हम से जाते जाते एक ग़ज़ल सुन जाना हो|

सारी दुनिया अक्ल की बैरी कौन यहां पर सयाना हो,
नाहक़ नाम धरें सब हम को दीवाना दीवाना हो|

तुम ने तो इक रीत बना ली सुन लेना शर्माना हो,
सब का एक न एक ठिकाना अपना कौन ठिकाना हो|

नगरी नगरी लाखों द्वारे हर द्वारे पर लाख सुखी,
लेकिन जब हम भूल चुके हैं दामन का फैलाना हो|

तेरे ये क्या जी में आई खींच लिये शर्मा कर होंठ,
हम को ज़हर पिलाने वाली अमृत भी पिलवाना हो|

हम भी झूठे तुम भी झूठे एक इसी का सच्चा नाम,
जिस से दीपक जलना सीखा परवाना मर जाना हो|

सीधे मन को आन दबोचे मीठी बातें सुन्दर लोग,
'मीर', 'नज़ीर', 'कबीर', और 'इन्शा' सब का एक घराना हो|

-------------------------------इब्ने इंशा