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Friday, December 28, 2012

जो भी दुख याद न था याद आया

जो भी दुख याद न था याद आया
आज क्या जानिए क्या याद आया

फिर कोई हाथ है दिल पर जैसे
फिर तेरा अहदे-वफ़ायाद आया

जिस तरह धुंध में लिपटे हुए फूल
एक-इक नक़्श तेरा याद आया

ऐसी मजबूरी के आलम में कोई
याद आया भी तो क्या याद आया

ऐ रफ़ीक़ो! सरे-मंज़िल जाकर
क्या कोई आबला-पा याद आया

याद आया था बिछड़ना तेरा
फिर नहीं याद कि क्या याद आया

जब कोई ज़ख़्म भरा दाग़ बना
जब कोई भूल गया याद आया

ये मुहब्बत भी है क्या रोग ‘फ़राज़’
जिसको भूले वो सदा याद आया

--------------------------------अहमद फ़राज़