તમને જરૂર છે ટેકાની ભાઇ મારા
અમને જરૂર છે કેશની !
હાલો પથ્થારી ફેરવીએ દેશની !
છ મહિના હાલે તો ગંગાજી નાહ્યા
આ વર્ષોની વાર્તાયું મેલો
સાત પેઢી નિરાંતે બેસીને ખાય
બસ એટલો જ ભરવો છે થેલો
દો’વા દે ત્યાં લગી જ આરતીયું ઊતરે છે
કાળી ડિબાંગ આ ભેંશની
હાલો પથ્થારી ફેરવીએ દેશની !
ફાઇલોના પારેવા ઘૂં ઘૂં કરે છે
હવે ચોકમાં દાણા તો નાખો
ગમ્મે તે કામ કરો
અમને ક્યાં વાંધો છે ?
પણ આપણા પચાસ ટકા રાખો
ચૂલે બળેલ કૈંક ડોશીયુંનાં નામ પર
આપી દ્યો એજન્સી ગેસની
હાલો પથ્થારી ફેરવીએ દેશની !
દેકારા, પડકારા, હોબાળા, રોજેરોજ
વાગે છે નીત નવાં ઢોલ
જેને જે સોંપાશે એવો ને એવો
અહીં અદ્દલ ભજવશે ઇ રોલ
નાટકની કંપનીયું – ઇર્ષ્યા કરે ને –
ભલે આપણે ત્યાં ભજવાતા વેશની
હાલો પથ્થારી ફેરવીએ દેશની !
--------------------- કૃષ્ણ દવે.
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Monday, January 26, 2009
Sunday, January 25, 2009
मेरे देश की धरती
मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती
बैलों के गले में जब घुँघरू जीवन का राग सुनाते हैं
ग़म कोस दूर हो जाता है खुशियों के कंवल मुसकाते हैं
सुन के रहट की आवाज़ें यों लगे कहीं शहनाई बजे
आते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत सजे
मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती
जब चलते हैं इस धरती पे हल ममता अँगड़ाइयाँ लेती है
क्यों ना पूजे इस माटी को जो जीवन का सुख देती है
इस धरती पे जिसने जनम लिया उसने ही पाया प्यार
तेरायहाँ अपना पराया कोई नही हैं सब पे माँ उपकार तेरा
मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती
ये बाग़ हैं गौतम नानक का खिलते हैं अमन के फूल यहाँ
गांधी, सुभाष, टैगोर, तिलक ऐसे हैं चमन के फूल यहाँ
रंग हरा हरिसिंह नलवे से रंग लाल है लाल बहादुर से
रंग बना बसंती भगतसिंह रंग अमन का वीर जवाहर से
मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती
----------- गुलशन बावरा
बैलों के गले में जब घुँघरू जीवन का राग सुनाते हैं
ग़म कोस दूर हो जाता है खुशियों के कंवल मुसकाते हैं
सुन के रहट की आवाज़ें यों लगे कहीं शहनाई बजे
आते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत सजे
मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती
जब चलते हैं इस धरती पे हल ममता अँगड़ाइयाँ लेती है
क्यों ना पूजे इस माटी को जो जीवन का सुख देती है
इस धरती पे जिसने जनम लिया उसने ही पाया प्यार
तेरायहाँ अपना पराया कोई नही हैं सब पे माँ उपकार तेरा
मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती
ये बाग़ हैं गौतम नानक का खिलते हैं अमन के फूल यहाँ
गांधी, सुभाष, टैगोर, तिलक ऐसे हैं चमन के फूल यहाँ
रंग हरा हरिसिंह नलवे से रंग लाल है लाल बहादुर से
रंग बना बसंती भगतसिंह रंग अमन का वीर जवाहर से
मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती
----------- गुलशन बावरा
मेरे देश की धरती ब्यूटी उगले
मेरे देश की धरती ब्यूटी उगले, लवली, क्यूट और स्वीटी!
मेरे देश की धरती....
ओलिंपिक में जब हम जाएँ तब धुलकर, पिटकर आते हैं,
दूजे ले जाएँ स्वर्ण पदक हम कांस्य पकड़, रह जाते हैं।
पुरुषों ने खाई मात मगर नारी ने मोर्चा संभाला है।
सुंदरता का सिरमौर बना इस देश का ठाठ निराला है॥
मेरे देश की धरती....॥
सुष्मिता, डायना, ऐश्वर्या, युक्ता और प्रियंका वाह-वाह जी,
भारत की ब्यूटी का जग में अरे बज गया डंका वाह-वाह जी।
उन्हें देख-देख के घर-घर में अब सजने लगीं गोरियाँ जी।
घर-घर खुल गए ब्यूटी पार्लर भँवरें-सी घूमें छोरियाँ जी॥
मेरे देश की धरती...॥
----------------------संयुक्ता
मेरे देश की धरती....
ओलिंपिक में जब हम जाएँ तब धुलकर, पिटकर आते हैं,
दूजे ले जाएँ स्वर्ण पदक हम कांस्य पकड़, रह जाते हैं।
पुरुषों ने खाई मात मगर नारी ने मोर्चा संभाला है।
सुंदरता का सिरमौर बना इस देश का ठाठ निराला है॥
मेरे देश की धरती....॥
सुष्मिता, डायना, ऐश्वर्या, युक्ता और प्रियंका वाह-वाह जी,
भारत की ब्यूटी का जग में अरे बज गया डंका वाह-वाह जी।
उन्हें देख-देख के घर-घर में अब सजने लगीं गोरियाँ जी।
घर-घर खुल गए ब्यूटी पार्लर भँवरें-सी घूमें छोरियाँ जी॥
मेरे देश की धरती...॥
----------------------संयुक्ता
Tuesday, January 20, 2009
આપણું મળવાનું ક્યાં સંભવ હવે, કારણ વગર
આપણું મળવાનું ક્યાં સંભવ હવે, કારણ વગર
ફોડ પાડીને કહું તો, લાભ કે વળતર વગર
જંગલો ખૂંદી વળેલો, ગામનો જણ - શહેરમાં
બેધડક રસ્તા ઉપર નીકળી શકે નહીં ડર વગર
કાળ તો તત્પર સદા, મારા પ્રહારો ઝીલવા
હું જ પાગલ હાથ ફંગોત્યા કરું ગોફણ વગર
માણસોને ચારવા નીકળી પડેલું આ નગર
સાંજના, ટોળું બની પાછું ફરે માણસ વગર
હું હજારો યુધ્ધનો લઇને અનુભવ શું કરું ?
જિંદગીમાં કાયમી લડવાનું છે લશ્કર વગર
તું ગરીબી આટલી, ક્યારેય ના દેતો ખુદા
આંગણે આવેલ પંખીને ઉડાડું ચણ વગર.
------------------------------ હિતેન આનંદપરા
ફોડ પાડીને કહું તો, લાભ કે વળતર વગર
જંગલો ખૂંદી વળેલો, ગામનો જણ - શહેરમાં
બેધડક રસ્તા ઉપર નીકળી શકે નહીં ડર વગર
કાળ તો તત્પર સદા, મારા પ્રહારો ઝીલવા
હું જ પાગલ હાથ ફંગોત્યા કરું ગોફણ વગર
માણસોને ચારવા નીકળી પડેલું આ નગર
સાંજના, ટોળું બની પાછું ફરે માણસ વગર
હું હજારો યુધ્ધનો લઇને અનુભવ શું કરું ?
જિંદગીમાં કાયમી લડવાનું છે લશ્કર વગર
તું ગરીબી આટલી, ક્યારેય ના દેતો ખુદા
આંગણે આવેલ પંખીને ઉડાડું ચણ વગર.
------------------------------ હિતેન આનંદપરા
Saturday, January 17, 2009
પત્ર
પત્રમાં પ્રીતમ લખું કે સખા, સાજન લખું?
શબ્દો હું મઘમઘ લખું, મૌનની સરગમ લખું.
તું યે કોરો ના રહે, જો તને લથબથ લખું,
આજ તોડું હદ બધી… બસ લખું, અનહદ લખું !
ઝાંઝવાનાં જળ છળું, મેહુલો છમછમ લખું,
તારી કોરી ધરતી પર હું મને ખળખળ લખું.
પથ્થરોનાં વનનાં હર પહાણ પર ધડકન લખું,
કાળજાની કોર પર લાગણી મધ્ધમ લખું.
રાત દિનની દરમિયાં કૈંક તો સગપણ લખું,
આભ અવનિને મળે, એક મિલનનું સ્થળ લખું.
દોહ્યલાં જીવનમાં એક સાહસી અવસર લખું,
સ્નેહનાં હર તાંતણે શૌર્યનાં હું વળ લખું.
માંહ્યલામાં ચાલતી કાયમી ચળવળ લખું,
દિલમાં તારા શું હશે? રેશમી અટકળ લખું.
લાવ તારા હાથમાં વ્હાલ હું અણનમ લખું,
ભાગ્યમાં હું એક બે પ્રેમઘેલી પળ લખું.
આટલું વ્હાલમ તને વ્હાલથી વ્હાલપ લખું,
ઊર્મિનાં લિખિતંગ લખું, સ્નેહનાં પરિમલ લખું.
--------------------------ઊર્મિ
Friday, January 16, 2009
नज़र नज़र से मिलाकर
नज़र नज़र से मिलाकर शराब पीते है,
हम उनको पास बिठाकर शराब पीते है.
इसीलिए तो अँधेरा है मैकदे में बहुत,
यहाँ घरों को जलाकर शराब पीते है.
हमें तुम्हारे सिवा कुछ नज़र नही आता,
तुम्हे नज़र में सजाकर शराब पीते है.
उन्हीं के हिस्से आती है प्यास ही अक्सर,
जो दूसरों को पिलाकर शराब पीते है.
-----------------------------तस्नीम फ़ारूक़ी
हम उनको पास बिठाकर शराब पीते है.
इसीलिए तो अँधेरा है मैकदे में बहुत,
यहाँ घरों को जलाकर शराब पीते है.
हमें तुम्हारे सिवा कुछ नज़र नही आता,
तुम्हे नज़र में सजाकर शराब पीते है.
उन्हीं के हिस्से आती है प्यास ही अक्सर,
जो दूसरों को पिलाकर शराब पीते है.
-----------------------------तस्नीम फ़ारूक़ी
Saturday, January 10, 2009
इतनी मुद्दत बाद मिले हो
इतनी मुद्दत बाद मिले हो
किन सोचों में गुम रहते हो
तेज़ हवा ने मुझ से पूछा
रेत पे क्या लिखते रहते हो
कौन सी बात है तुम में ऐसी
इतने अच्छे क्यों लगते हो
हम से न पूछो हिज्र के क़िस्से
अपनी कहो अब तुम कैसे हो
-------------------------मोह्सिन नक़्वी
किन सोचों में गुम रहते हो
तेज़ हवा ने मुझ से पूछा
रेत पे क्या लिखते रहते हो
कौन सी बात है तुम में ऐसी
इतने अच्छे क्यों लगते हो
हम से न पूछो हिज्र के क़िस्से
अपनी कहो अब तुम कैसे हो
-------------------------मोह्सिन नक़्वी
Saturday, January 3, 2009
चल मेरे साथ ही चल
चल मेरे साथ ही चल ऐ मेरी जान-ए-ग़ज़ल
इन समाजों के बनाये हुये बंधन से निकल, चल
हम वहाँ जाये जहाँ प्यार पे पहरे न लगें
दिल की दौलत पे जहाँ कोई लुटेरे न लगें
कब है बदला ये ज़माना, तू ज़माने को बदल, चल
प्यार सच्चा हो तो राहें भी निकल आती हैं
बिजलियाँ अर्श से ख़ुद रास्ता दिखलाती हैं
तू भी बिजली की तरह ग़म के अँधेरों से निकल, चल
अपने मिलने पे जहाँ कोई भी उँगली न उठे
अपनी चाहत पे जहाँ कोई दुश्मन न हँसे
छेड़ दे प्यार से तू साज़-ए-मोहब्बत-ए-ग़ज़ल, चल
पीछे मत देख न शामिल हो गुनाहगारों में
सामने देख कि मंज़िल है तेरी तारों में
बात बनती है अगर दिल में इरादे हों अटल, चल
----------------------------हसरत जयपुरी
इन समाजों के बनाये हुये बंधन से निकल, चल
हम वहाँ जाये जहाँ प्यार पे पहरे न लगें
दिल की दौलत पे जहाँ कोई लुटेरे न लगें
कब है बदला ये ज़माना, तू ज़माने को बदल, चल
प्यार सच्चा हो तो राहें भी निकल आती हैं
बिजलियाँ अर्श से ख़ुद रास्ता दिखलाती हैं
तू भी बिजली की तरह ग़म के अँधेरों से निकल, चल
अपने मिलने पे जहाँ कोई भी उँगली न उठे
अपनी चाहत पे जहाँ कोई दुश्मन न हँसे
छेड़ दे प्यार से तू साज़-ए-मोहब्बत-ए-ग़ज़ल, चल
पीछे मत देख न शामिल हो गुनाहगारों में
सामने देख कि मंज़िल है तेरी तारों में
बात बनती है अगर दिल में इरादे हों अटल, चल
----------------------------हसरत जयपुरी
दो जवाँ दिलों का ग़म
दो जवाँ दिलों का ग़म दूरियाँ समझती हैं
कौन याद करता है हिचकियाँ समझती हैं।
तुम तो ख़ुद ही क़ातिल हो, तुम ये बात क्या जानो
क्यों हुआ मैं दीवाना बेड़ियाँ समझती हैं।
बाम से उतरती है जब हसीन दोशीज़ा
जिस्म की नज़ाक़त को सीढ़ियाँ समझती हैं।
यूँ तो सैर-ए-गुलशन को कितना लोग आते हैं
फूल कौन तोड़ेगा डालियाँ समझती हैं।
जिसने कर लिया दिल में पहली बार घर “दानिश”;
उसको मेरी आँखों की पुतलियाँ समझती हैं।
----------------------------दानिश
कौन याद करता है हिचकियाँ समझती हैं।
तुम तो ख़ुद ही क़ातिल हो, तुम ये बात क्या जानो
क्यों हुआ मैं दीवाना बेड़ियाँ समझती हैं।
बाम से उतरती है जब हसीन दोशीज़ा
जिस्म की नज़ाक़त को सीढ़ियाँ समझती हैं।
यूँ तो सैर-ए-गुलशन को कितना लोग आते हैं
फूल कौन तोड़ेगा डालियाँ समझती हैं।
जिसने कर लिया दिल में पहली बार घर “दानिश”;
उसको मेरी आँखों की पुतलियाँ समझती हैं।
----------------------------दानिश
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