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Tuesday, July 28, 2009

कभी मुझ को साथ लेकर

कभी मुझ को साथ लेकर, कभी मेरे साथ चल के
वो बदल गये अचानक, मेरी ज़िन्दगी बदल के
हुए जिस पे मेहरबाँ, तुम कोई ख़ुशनसीब होगा
मेरी हसरतें तो निकलीं, मेरे आँसूओं में ढल के
तेरी ज़ुल्फ़-ओ-रुख़ के, क़ुर्बाँ दिल-ए-ज़ार ढूँढता है
वही चम्पई उजाले, वही सुरमई धुंधलके
कोई फूल बन गया है, कोई चाँद कोई तारा
जो चिराग़ बुझ गये हैं, तेरी अंजुमन में जल के
मेरे दोस्तो ख़ुदारा, मेरे साथ तुम भी ढूँढो
वो यहीं कहीं छुपे हैं, मेरे ग़म का रुख़ बदल के
तेरी बेझिझक हँसी से, न किसी का दिल हो मैला
ये नगर है आईनों का, यहाँ साँस ले सम्भल के

----------------अहसान बिन 'दानिश'

यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे

यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे
साथ चल मौज-ए-सबा हो जैसे
लोग यूँ देख कर हँस देते हैं
तू मुझे भूल गया हो जैसे
इश्क़ को शिर्क की हद तक न बड़ा
यूँ न मिल हमसे ख़ुदा हो जैसे
मौत भी आई तो इस नाज़ के साथ
मुझपे एहसान किया हो जैसे
ऐसे अंजान बने बैठे हो
तुम को कुछ भी न पता हो जैसे
हिचकियाँ रात को आती ही रहीं
तू ने फिर याद किया हो जैसे
ज़िन्दगी बीत रही है "दानिश"
एक बेजुर्म सज़ा हो जैसे

--------------------अहसान बिन 'दानिश'

Monday, July 13, 2009

વાત છે

મુફલિસની વાત છે કે સિકંદરની વાત છે,
અંતે બહારના જ ક્લેવરની વાત છે.
દાવા-દલીલ-માફી-ખુલાસાનું કામ શું ?
પ્રેમી છીએ અમે ને પરસ્પરની વાત છે.
મેં પણ કરી અતીત ઉપર ભૂલથી નજર,
પથ્થર બની ગયેલ મુસાફરની વાત છે.
ઊભા રહેવા જેને મળી સોયની અણી
માલિક એ વિશ્ર્વનો છે, મુકદ્દરની વાત છે.
જીવન સમજવું હોય તો ક્ષણનો ખયાલ કર,
ટીપાંની વાત એ જ સમંદરની વાત છે.

------------------હેમેન શાહ

કોઇ હતું

કોઇ અડધી લખેલી ગઝલમાં હતું
કોણ માની શકે જલ, કમલમાં હતું !
શું હતું, ક્યાં ગયું, પ્રશ્ન એ ક્યાં હતો ?
જે હતું તે બધું, દરઅસલમાં હતું !
શબ્દ પાસે વિકલ્પો હતાં અર્થનાં
સત્ય કડવું ભલે,પણ અમલમાં હતું !
કોણ કે’છે મુકદર બદલતું નથી ?
આજ એ પણ અહીં,દલબદલમાં હતું !
છેક છેલ્લે સુધી અવતરણ ચિહ્નમાં
ને હવે, આંસુઓની શકલમાં હતું !
ફેર શું હોય છે, રૂપ નેં ધૂપમાં ?
બેઉ, અડધે સુધી હર મજલમાં હતું !

----------------ડો.મહેશ રાવલ

Saturday, July 4, 2009

दो बदन

जब चली ठंडी हवा जब उठी काली घटा
मुझ को ऐ जान-ए-वफा तुम याद आए
जिंदगी की दास्‌ता. चाहे कितनी हो हसी
बीन तुम्हारे कुछ नही
क्या मजा आता सनम. आज भूले से कही
तुम भी आ जाते यही
ये बहारे ये फिजा. देखकर ओ दिलरुबा
जाने क्या दिल को हुआ. तुम याद आए
ये नजारे ये समा और फिर इतने जवां
हाय रे ये मस्तीया
ऐसा लगता हैं मुझे जैसे तुम नजदीक हो
इस चमन से जान-ए-जां
सुन के पी पी की सदा दिल धडकता हैं मेरा
आज पहले से सिवा. तुम याद आए

----------------------------शकील बदायुनी