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Wednesday, February 23, 2011

बाद मुद्दत उसे देखा

बाद मुद्दत उसे देखा, लोगो
वो ज़रा भी नहीं बदला, लोगो

खुश न था मुझसे बिछड़ कर वो भी
उसके चेहरे पे लिखा था लोगो

उसकी आँखें भी कहे देती थीं
रात भर वो भी न सोया, लोगो

अजनबी बन के जो गुजरा है अभी
था किसी वक़्त में अपना, लोगो

दोस्त तो खैर, कोई किस का है
उसने दुश्मन भी न समझा, लोगो

रात वो दर्द मेरे दिल में उठा
सुबह तक चैन न आया, लोगो

---------------------परवीन शाकिर

Monday, February 14, 2011

साँझ फागुन की

फिर कहीं मधुमास की पदचाप सुन
डाल मेंहदी की लजीली हो गई!

दूर तक अमराइयों, वनबीथियों में
लगी संदल हवा चुपके पाँव रखने
रात-दिन फिर कान आहट पर लगाए
लगा महुआ गंध की बोली परखने

दिवस मादक होश खोए लग रहे
साँझ फागुन की नशीली हो गई!

हँसी शाखों पर कुँआरी मंजरी
फिर कहीं टेसू के सुलगे अंग-अंग
लौट कर परदेश से चुपचाप फिर
बस गया कुसुमी लताओं पर अनंग

चुप खड़ी सरसों की गोरी सी हथेली
डूब कर हल्दी में पीली हो गई!

फिर उड़ी रह-रह के आँगन में अबीर
फिर झड़े दहलीज पर मादक गुलाल
छोड़ चन्दन-वन चली सपनों के गाँव
गंध कुंकुम के गले में बाँह डाल

और होने के लिए रंगों से लथपथ
रेशमी चूनर हठीली हो गई!

-----------------रामानुज त्रिपाठी

तेरा ख़याल दिल से मिटाया नहीं अभी

तेरा ख़याल दिल से मिटाया नहीं अभी
बेदर्द मैं ने तुझ को भुलाया नहीं अभी

कल तूने मुस्कुरा के जलाया था ख़ुद जिसे
सीने का वो चराग़ बुझाया नहीं अभी

गदर्न को आज भी तेरे बाहों की याद है
चौखट से तेरी सर को उठाया नहीं अभी

बेहोश होके जल्द तुझे होश आ गया
मैं बदनसीब होश में आया नहीं अभी

----------------साहिर लुधियानवी