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Saturday, September 29, 2012

रस में डूबा हुआ लहराता बदन क्या कहना

रस में डूबा हुआ लहराता बदन क्या कहना
करवटें लेती हुई सुबह-ए-चमन क्या कहना

बाग़-ए-जन्नत में घटा जैसे बरस के खुल जाये
सोंधी सोंधी तेरी ख़ुश्बू-ए-बदन क्या कहना

जैसे लहराये कोई शोला कमर की ये लचक
सर ब-सर आतिश-ए-सय्याल बदन क्या कहना

क़ामत-ए-नाज़ लचकती हुई इक क़ौस-ओ-ए-क़ज़ाह
ज़ुल्फ़-ए-शब रंग का छया हुआ गहन क्या कहना

जिस तरह जल्वा-ए-फ़िर्दौस हवाओं से छीने
पैराहन में तेरे रंगीनी-ए-तन क्या कहना

जल्वा-ओ-पर्दा का ये रंग दम-ए-नज़्ज़ारा
जिस तरह अध-खुले घुँघट में दुल्हन क्या कहना

जगमगाहट ये जबीं की है के पौ फटती है
मुस्कुराहट है तेरी सुबह-ए-चमन क्या कहना

ज़ुल्फ़-ए-शबगूँ की चमक पैकर-ए-सीमें की दमक
दीप माला है सर-ए-गंग-ओ-जमन क्या कहना

--------------------------------फ़िराक़ गोरखपुरी

Thursday, September 27, 2012

जागती रात अकेली-सी लगे

जागती रात अकेली-सी लगे
ज़िंदगी एक पहेली-सी लगे

रुप का रंग-महल, ये दुनिया
एक दिन सूनी हवेली-सी लगे

हम-कलामी तेरी ख़ुश आए उसे
शायरी तेरी सहेली-सी लगे

मेरी इक उम्र की साथी ये ग़ज़ल
मुझ को हर रात नवेली-सी लगे

रातरानी सी वो महके ख़ामोशी
मुस्कुरादे तो चमेली-सी लगे

फ़न की महकी हुई मेंहदी से रची
ये बयाज़ उस की हथेली-सी लगे  

---------------------------अब्दुल अहद ‘साज़’